खामोश सी नज़र वो,
कुछ खोई सी, कुछ ढूंढती सी, दुनिया से बेखबर,
तूफानों
को रोकती, भर आती जो रह-रह कर,
खामोश-सी नज़र यूँ ही तो नहीं ठहरी थी मुझ पर...
खुलती थीं आशाओं में, बंद होती कई सपने लेकर,
कह जातीँ जाने क्या-क्या बिलकुल चुप रह कर,
गुमसुम-सी नज़र वो, जाने क्यों ठहर जाती थीं मुझ पर...
खुश थीं वो अपने-आप में, हर किस्से से बेफिक्र,
कुछ पाना चाहती थीं सब कुछ खो कर,
बेबाक सी नज़र वो, ठहर जाती है आज भी मुझ पर...