Sunday, December 6, 2015

खामोश सी नज़र वो








खामोश सी नज़र वो,
कुछ खोई सी, कुछ ढूंढती सी, दुनिया से बेखबर,
तूफानों को रोकती, भर आती जो रह-रह कर,
खामोश-सी नज़र यूँ ही तो नहीं ठहरी थी मुझ पर...

खुलती थीं आशाओं में, बंद होती कई सपने लेकर,
कह जातीँ जाने क्या-क्या बिलकुल चुप रह कर,
गुमसुम-सी नज़र वो, जाने क्यों ठहर जाती थीं मुझ पर...

खुश थीं वो अपने-आप में, हर किस्से से बेफिक्र,
कुछ पाना चाहती थीं सब कुछ खो कर,
बेबाक सी नज़र वो, ठहर जाती है आज भी मुझ पर...



 

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