Thursday, May 27, 2010

मेरा बचपन


वो एक पल का बचपन मेरा,
अब भी मुझे याद है,
वो धूप में घर-घर खेलना,
वो खेल खेल मे झगड़ना,
वो प्यारा-सा बचपन,
मेरा अब भी मुझे याद है|
वो गर्मी की दोपहर में बंद दरवाज़ों पे दस्तक देना,
वो सोते हुए लोगों को जगाकर छिप जाना,
वो नटखट-सा बचपन मेरा,
अब भी मुझे याद है|
वो भइया के कंचे, और वो गली के दोस्त,
माँ को सख़्त नापसंद थे जो,
कंचे खेलने पर भइया को सताना,
उस से अपनी हर बात मनवाना,
वो मासूम-सा बचपन मेरा,
अब भी मुझे याद है|
वो भइया का चले जाना,फिर कभी लौट कर ना आना,
वो मेरा भगवान को उसे वापस भेजने के लिए मनाना,
वो अधूरा-सा बचपन मेरा,
अब भी मुझे याद है,
वो उसका बिना बोले जाना,
मेरे बचपन का अधूरा रह जाना,
अब भी मुझे याद है....

Tuesday, May 25, 2010


रिमझिम बारिश में भीगी थी कई बार,
बूँदें तो आज भी भिगोती हैं तन को,
पर मन उससे अछूता क्यों है?
दिल तो पहले भी टूटता-जुड़ता रहता था,
पर अब किसी से प्यार करना भी समझौता क्यों है?

ख्वाहिशें कई हैं जो पूरी नहीं हो पाईं,
पर अब उनके अधूरे होने का एहसास क्यों है?
चाँद को पाना तो कब से चाहती थी,
पर अब उसके ना मिलने से मन इतना उदास क्यों है?

गलियों में अक्सर होती थी ख़ामोशी पहले,
पर अब उसमें अजीब-सी तन्हाई क्यों है?
दूरियाँ तो पहले भी थीं,
पर अब दिलों के बीच ये गहरी खाई क्यों है??

Monday, May 24, 2010

मैं तुझको जीने दूँगी..


खुशियों का संसार नहीं पर, थोड़ी खुशियाँ माँगी थीं,
महलों सा घरबार नहीं पर, एक छोटी सी गुड़िया माँगी थी,
पर आने से पहले ही वो बोली," माँ, मुझको जीवन मत दो,
जहाँ उगे हैं पग पग हवस के काँटे, मुझे तुम वो उपवन मत दो|"
मैं बोली," तू आ जा लाडो, मैं तुझको जीना सिखा दूँगी,
पग पग बिखरे काँटों से फूलों को चुनना बता दूँगी..
जीवन के इस रण में तेरा साथ कभी ना छोड़ूँगी,
तू कर ले विश्वास मुझ पर,ये वचन कभी ना तोड़ूँगी|
तू जीवन की कठिन राह पर यूँ ही बढ़ती जाएगी,
आए जो बाधाएं भी तो, तू उनसे लड़ती जाएगी|
विष का प्याला देकर तुझको मीरा नहीं बनने दूँगी,
ना अग्नि पर चलकर तुझको सीता सा जलने दूँगी,
साथ चलूंगी तेरे पग पग, तुझको ना गिरने दूँगी,
दुनिया में तू आ जा गुड़िया,मैं तुझको जीने दूँगी...
मैं तुझको जीने दूँगी...|"

Thursday, May 20, 2010

कमी


हमने तो आपको दोस्त ही माना,
पर शायद कहीं कोई कमी रह गयी,
हमने आपको पलकों पे बिठाया,दिल में बसाया,
पर शायद कहीं कोई कमी रह गयी..
हम तो बस आपकी दोस्ती चाहते थे,
पर आपको अपना बना ना सके,
अगर कभी कहीं मौका मिले तो बताईएगा कि
कहाँ पर, कैसी कमी रह गयी,
हम आपके दोस्त ही हैं दुश्मन तो नहीं,
यही सोचकर हमारी आँखों में नमी रह गयी,
की आख़िर कहाँ पर कमी रह गयी..

Friday, May 7, 2010

तमन्ना


तमन्ना थी आशियाने की,
चली आँधियाँ ज़माने की,
अपना घर छोड़ दिया,
उनका घर बसाने को,
वो छोड़ कर चल दिए ,
ज़माने की ठोकर खाने को,
जिनके प्यार मे दुनिया से हम बेगाने हो गए,
पास आकर हमसे ही वो अनजाने हो गए,
तमन्ना थी,उनके दिल मे बस जाने की,
और आज आरज़ू है बस उनसे एक बार मिल पाने की...
कभी तमन्ना थी आशियाने की......................

Monday, May 3, 2010

ठोकर


जीवन का सच बताती है ठोकर,
गिरकर उठना सिखाती है ठोकर,
समय का मूल्य समझाती है ठोकर,
कड़वे बोल दोहराती है ठोकर...
जो ठोकर ना मिलती,
तो यूँ चल पाना कठिन था...
बिना ठोकर,
कदमों का संभल पाना कठिन था,
पथरीले रास्तों को समतल बनाती है ठोकर,
विषैले वचनों को सहना सिखाती है ठोकर,
जीवन का सच दिखाती है ठोकर.........
गिर-गिर कर उठना सिखाती है ठोकर............

Sunday, May 2, 2010

हँसकर जीना जीवन को........


हँसकर जीना जीवन को,
मैंने तुमसे सीखा है,
खोकर पाना खुशियों को,
मैंने तुमसे सीखा है.....
तुम जो छू दो मन को मेरे,
चाँद सितारे झुक जाएं,
आकर बस जाओ दिल में तो,
ये धरती भी शायद रुक जाए,
दिल हारकर भी जीतना,
मैंने तुमसे सीखा है,
हँसकर जीना जीवन को मैंने तुमसे सीखा है.....
साथ रहो पल-दो-पल तो,
फूलों की तरह मैं खिल जाऊं,
थाम लो दामन मेरा तो,
दो रंगों की तरह मैं मिल जाऊं,
सपनों को जीना हक़ीक़त में,
मैंने तुमसे सीखा है..........
हँसकर जीना जीवन को मैंने तुमसे सीखा है.................

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मासूम मोहब्बत का बस इतना फसाना है,
काग़ज़ की हवेली है,बारिश का ज़माना है...

क्या शर्त-ए-मोहब्बत है,
क्या शर्त-ए-ज़माना है,
आवाज़ भी ज़ख्मी है, गीत भी गाना है....

उस पार उतरने की उम्मीद बहुत कम है,
कश्ती भी पुरानी है,
तूफान भी आना है...

समझे कि ना समझे वो अंदाज़ मोहब्बत के,
एक शख्स को आँखों से एक शेर सुनाना है....

भोली सी अदा कोई फिर इश्क़ की ज़िद्द पर है,
फिर आग का दरिया है और डूब के जाना है........

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Saturday, May 1, 2010

बिना सिर-पैर की कविता


थी राह देखती तेरी, लेकर मधुर आस मिलन की,
किंतु सहृदय होकर तुम सुधि ना ले सके मन की,
नित इतना निष्ठुर बनकर कब तक रह लोगे एकाकी,
निज उर की कोमल मधु से वंचित रख लोगे साकी,
है विजय तुम्हारी फिर भी,
ये मेरी हार नही......
जल-जल कर पतंगे का मरना,
क्या ये सच्चा प्यार नही....
क्या ये सच्चा प्यार नही...
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