
वो एक पल का बचपन मेरा,
अब भी मुझे याद है,
वो धूप में घर-घर खेलना,
वो खेल खेल मे झगड़ना,
वो प्यारा-सा बचपन,
मेरा अब भी मुझे याद है|
वो गर्मी की दोपहर में बंद दरवाज़ों पे दस्तक देना,
वो सोते हुए लोगों को जगाकर छिप जाना,
वो नटखट-सा बचपन मेरा,
अब भी मुझे याद है|
वो भइया के कंचे, और वो गली के दोस्त,
माँ को सख़्त नापसंद थे जो,
कंचे खेलने पर भइया को सताना,
उस से अपनी हर बात मनवाना,
वो मासूम-सा बचपन मेरा,
अब भी मुझे याद है|
वो भइया का चले जाना,फिर कभी लौट कर ना आना,
वो मेरा भगवान को उसे वापस भेजने के लिए मनाना,
वो अधूरा-सा बचपन मेरा,
अब भी मुझे याद है,
वो उसका बिना बोले जाना,
मेरे बचपन का अधूरा रह जाना,
अब भी मुझे याद है....