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रिमझिम बारिश में भीगी थी कई बार,
बूँदें तो आज भी भिगोती हैं तन को,
पर मन उससे अछूता क्यों है?
दिल तो पहले भी टूटता-जुड़ता रहता था,
पर अब किसी से प्यार करना भी समझौता क्यों है?
ख्वाहिशें कई हैं जो पूरी नहीं हो पाईं,
पर अब उनके अधूरे होने का एहसास क्यों है?
चाँद को पाना तो कब से चाहती थी,
पर अब उसके ना मिलने से मन इतना उदास क्यों है?
गलियों में अक्सर होती थी ख़ामोशी पहले,
पर अब उसमें अजीब-सी तन्हाई क्यों है?
दूरियाँ तो पहले भी थीं,
पर अब दिलों के बीच ये गहरी खाई क्यों है??
great poem!!
ReplyDeleteamazing!!
hehehhehe..... u never leave a chance to mock at me!!!
ReplyDeletereal good.. :)
ReplyDeletethank u prateek :):)
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