
तमन्ना थी आशियाने की,
चली आँधियाँ ज़माने की,
अपना घर छोड़ दिया,
उनका घर बसाने को,
वो छोड़ कर चल दिए ,
ज़माने की ठोकर खाने को,
जिनके प्यार मे दुनिया से हम बेगाने हो गए,
पास आकर हमसे ही वो अनजाने हो गए,
तमन्ना थी,उनके दिल मे बस जाने की,
और आज आरज़ू है बस उनसे एक बार मिल पाने की...
कभी तमन्ना थी आशियाने की......................
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