Monday, May 24, 2010

मैं तुझको जीने दूँगी..


खुशियों का संसार नहीं पर, थोड़ी खुशियाँ माँगी थीं,
महलों सा घरबार नहीं पर, एक छोटी सी गुड़िया माँगी थी,
पर आने से पहले ही वो बोली," माँ, मुझको जीवन मत दो,
जहाँ उगे हैं पग पग हवस के काँटे, मुझे तुम वो उपवन मत दो|"
मैं बोली," तू आ जा लाडो, मैं तुझको जीना सिखा दूँगी,
पग पग बिखरे काँटों से फूलों को चुनना बता दूँगी..
जीवन के इस रण में तेरा साथ कभी ना छोड़ूँगी,
तू कर ले विश्वास मुझ पर,ये वचन कभी ना तोड़ूँगी|
तू जीवन की कठिन राह पर यूँ ही बढ़ती जाएगी,
आए जो बाधाएं भी तो, तू उनसे लड़ती जाएगी|
विष का प्याला देकर तुझको मीरा नहीं बनने दूँगी,
ना अग्नि पर चलकर तुझको सीता सा जलने दूँगी,
साथ चलूंगी तेरे पग पग, तुझको ना गिरने दूँगी,
दुनिया में तू आ जा गुड़िया,मैं तुझको जीने दूँगी...
मैं तुझको जीने दूँगी...|"

1 comment:

  1. hhmmmmm after reading this i think u shud write ur own book!!!!!!!! awesome poem
    ....hats off 2 u

    ReplyDelete